Dwarkanath Tagore in Hindi – पहले भारतीय उद्योगपतियों में से एक द्वारकानाथ टैगोर का जीवन परिचय हिंदी में

Dwarkanath Tagore Biography in Hindi – भारत के पहले महान उघोगपति और रबिन्द्नाथ टैगोर के दादा द्वारकानाथ टैगोर के उल्लेख के बगैर भारत का व्यापारिक इतिहास अधूरा रहेगा. 1794 में जन्मे द्वारकानाथ टैगोर का निधन 1 अगस्त, 1847 को हुआ था, उनके ज्यादातर साथी या तो अपनी जमीदारी से होने वाली आमदनी पर निर्भर थे या फिर बनिया या ईस्ट इंडिया कंपनी के दलाल के तौर पर काम करते थे, लेकिन द्वारकानाथ उन सबसे अलग बड़ी योजनायें बना रहे थे, परम्पराओं से हटकर द्वारकानाथ टैगोर ने व्यापारी के साथ साथ उत्पादक बिजनस करियर शुरू किया. वह अपनी जमीं में सिल्क, मसाले और नील की खेती करते थे, जिसे वह विदेश निर्यात करते थे. 1813 में भारत के विदेश व्यापार पर बिर्टिश ईस्ट इंडिया कम्पाई का एकाधिकार ख़त्म होना द्वारकानाथ टैगोर जैसे महत्वाकांक्षी बिजनेसमैन के लिए बढ़ी कामयाबी का दरवाजा खुलने के सामान था. वह किस पैमाने पर व्यापर करते थे, उसका अंदाजा इस बात से लागाया जा सकता हैं की उन्होंने जहाज भरकर सौंफ और जायफल चिली और अर्जेंटीना को भेजे थे.

जब व्यापार से अच्छी कमाई हो रही थी, तो द्वारकानाथ ने बीमा और बैंकिंग उघोग में भी अपना भाग्य आजमाना चाहा, जो उस समाया भारत में उभरता हुआ सेक्टर था. वित्तीय सेवा सेक्टर की संभावनाओं को भांपते हुए, उन्होंने 1822 में ओरीइंटल लाइफ इश्योरेंस सोसायटी’ की स्थापना की जिसमें उनके पार्टनर बिर्टिश मर्चेंट्स थे. यह कंपनी खासतौर पर धनि लोगो को जीवन बीमा देने के साथ-साथ व्यापारियों एवं उनके जहाज का समुद्री बीमा करती थी.

1828 में अपने बिर्टिश पार्टनर्स के साथ उन्होंने ‘द यूनियन बैंक’ (मौजूदा यूनियन बैंक में इसका कोई लेना देना नहीं हैं) की स्थापना की और भारत के पहले बैंक निदेशक बन गए. दरअसल इसकी स्थापना बैंक ऑफ़ बंगाल के मुकाबले में की गई थी. बैंक ऑफ़ बंगाल बिर्टिश वाला बैंक था, जो सिर्फ बिर्टिश हितों को पूरा करता था. यूनियन बैंक अपने समय का सबसे बड़ा इंडो-बिर्टिश जॉइंट कमर्शल वेंचर था. द्वारकानाथ के जीवनकाल में यह कलकत्ता में कमर्शल एक्टिविटी का स्तम्भ था.

1830 में उन्होंने कार, तैगोड एंड कंपनी के नाम से एक कॉर्पोरेट संस्था की स्थापना की. वह आधुनिक समय की होल्डिंग कंपनी के तरह की संस्था थी, इसने द्वारकानाथ के कई बिजनस वेंचरों को आगे बढाया. इसके अलावा बिजनस फिल्ड में उन्होंने कई महान क्रान्ति में योगदान दिया, जिसका उल्लेख आगे किया गया है.

बड़ी संख्या में बिर्टिश कारोबारियों से संपर्क होने के कारण उन्होंने देखा की स्टीम टेक्नोलोजी ने यूरोप में कैसे ओघोगिक क्रान्ति को रफ़्तार दिया. वह भारत में भी उघोग क्षेत्र में क्रान्ति लाने के लिए स्टीम टेक्नोलोजी को अपनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने इंग्लॅण्ड से स्टीम इंजन मंगवाए और अपने बिजनस वेंचरों में इस्तेमाल के अनुकूल उसे ढाला. 1830 में उन्होंने कलकत्ता स्टीम टग एसोसिएशन की स्थापना की, जिसके पास स्टीम इंजन से चलने वाली कई टगबोट्स थी. उसके बाद उन्होंने स्टीमबोट फेरी सर्विस शुरू की, जिसकी मदद से यात्रियों एवं सामान का गंगा से आवागमन होता था.

इंजन को गर्म करने के लिए कोयले की जरुरत होती थी. इसे देखते हुए द्वारकानाथ ने बंगाल में कोयला की खाने भी खरीद ली, जिसे उन्होंने देश के सबसे बड़े और सर्वाधिक सक्षम कोयला खानों के टूर पर विकसित किया. उन्होंने जिन कौयला खानों को खरीदा उनमे देश की प्रमुख रानीगंज कोयला खां भी शामिल थी, जो अब कोल इंडिया लिमिटेड के स्वामित्व में है.

1842 में जब वे लन्दन गए, तो उनको कोयले के परिवहन के लिए रानीगंज से कलकत्ता के बीच रेलवे लाइन बिछाने का ख्याल आया. आगले साल उन्होंने ग्रेट वेस्टर्न बंगाल रेलवे कंपनी की स्थापना की और अपने प्रोजेक्ट्स के लिए फण्ड भी जमा किआ, लेकिन बिर्टिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने मंजूरी नहीं दी, चूँकि कंपनी नहीं चाहती थी की रेलवे भारतीय के नियंत्रण में हो.

भारत में चाय की पहली बार वाणिज्यिक खेती बंगाल टी एसोसिएशन ने की जो द्वारकानाथ टैगोर के नेतृत्व में भारतीय व्यापारियों का एक संघ था. बाद में इस कम्पनी का नाम बदलकर 1839 में असम कम्पनी हो गया. यह कम्पनी अब तक मौजूद हैं.

1846 में सिर्फ 51 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. वह काफी समय से डायबिटीज से पीड़ित थे. उनके बाद उनके कारोबार को आगे ले जाने वाला कोई नहीं था. उनके परिवार ने कला एवं संस्कृति को प्राथमिकता दी. द्वारकानाथ टैगोर के सारे बिजनस या तो बंद हो गए या बिर्टिश के हाथ चले गए.

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