शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23, 24)
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भारत के मध्य काल में जमींदार, राजा, नवाब तथा अन्य लोग अपने अधीनस्थ लोगो से बहार लेते थे| अपना निजी कार्य कराकर उनको बदले में कुछ भी नहीं देते थे| इसके अतिरिक्त ग्रामों में स्त्रियों, दासों व् बालकों के क्रय-विक्रय की कुरीति भी प्रचलन में थी| स्वतंत्र हो जाने के बाद भी समाज के दुर्बल वर्ग का सर्वत्र शोषण होता हुआ हम देख रहे है|
Right Against Exploitation in Hindi (Article 23, 24)
भारतीय संविधान में इन अनेक अत्याचारों, कुरीतियों व् शोषण को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 23 एवं 24 में शोषण के विरुद्ध व्यवस्था की गई है-
1. मानव के क्रय-विक्रय तथा जबरदस्ती मजदूरी कराने पर प्रतिबन्ध (Prohibition of traffic in human beings and forced labour) – अनुच्छेद 23 के अनुसार मानव के क्रय-विक्रय और बेगार तथा इसी प्रकार के जबरदस्ती लिए जाने वाले श्रम प्रतिबंधित कर दी गए है| इस अधिकार का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दण्डनीय होगा|
उपरोक्त अधिकार शोषण के विरुद्ध दो व्यवस्थाओं का उल्लेख करता है-
क. मनुष्य के क्रय-विक्रय पर प्रतिबन्ध (Traffic in Human Beings in Prohibited) – गत हजार वर्ष की गुलामी ने भारतीय समाज में जिन अनेक कृतियों को जन्म दिया था उनमें मनुष्यों का क्रय-विक्रय भी सम्मिलित है| मनुष्य जाती में पशुओं के सामान क्रय-विक्रय भारत के उज्जवल मस्तक पर कलंक के सामान था| भारत संविधान संविधान के अनुच्छेद 23 ने इस शोषण के विरुद्ध प्रतिबन्ध लगाया है और इस प्रकार अब भारत में स्त्रियों, बच्चो अथवा पुरुषो के क्रय-विक्रय पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है|
ख. बेगार आदि लेने पर प्रतिबन्ध (Begar etc. is prohibited) – अनुच्छेद 23 के अंतर्गत अब कोई व्यक्ति किसी से बेगार नहीं ले सकता अर्थात बिना मजदूरी दिए किसी व्यक्ति से जबरदस्ती काम नहीं लिया जा सकता और न किसी व्यक्ति से उसकी इच्छा के विपरीत कोई कार्य कराया जा सकता है| बिर्टिश युग में जमींदार व् सहकर लोग तथा बढे-बढे सरकारी अधिकारी गरीब जनता से बेगार लेते थे तथा बलात श्रम कराते थे| संविधान में ऐसे करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है|
अपवाद – संविधान के अनुच्छेद 23 में दिए गए अधिकार के भी अपवाद है| सार्वजनिक हित को सामने रखकर सर्कार जनता को विशेष कार्य करने के लिए बाध्य कर सकती है\ जैसे अनिवार्य सैनिक सेवा कानून के अंतर्गत लोगो को सेना में भर्ती किया जा सकता है| अथवा अन्य व्यक्तियों को सार्वजानिक हित के कार्य करने के लिए बाध्य कर सकती है|
2. कारखाने आदि में बालकों के काम करने पर प्रतिबन्ध (Prohibition of employment of Children in Factories etc.) – कारखानों, खानों आदि के मालिक छोटी आयु के बालकों को काम पर लगाना पसंद करते थे क्यूंकि इन बालकों को कम मजदूरी देनी पढ़ती थी| भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 में स्पस्ट उल्लेख किया गया है की 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को खानों में अथवा कारखानों आदि में कार्य करने के लिए नहीं लगया जाएगा, जिससे उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव न पड़े| इस प्रकार बालकों के शोषण पर प्रतिबन्ध लगाकर संविधान में भावी पीढ़ी की उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है|