पानीपत की दूसरी लड़ाई
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पानीपत का द्वितीय युद्ध मुग़ल शासक अकबर और हिन्दू राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) की सेना के बिच लड़ा गया था, पानीपत का द्वितीय युद्ध इन दोनों राजाओ के व् इनकी सेनाओं के बीच 5 नवम्बर 1556 को हुआ था. पानीपत का द्वितीय युद्ध में जीत अकबर की हुई थी जिसमे अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान थे. इस युद्ध के परिणामो ने यह साबित कर दिया की दिल्ली अगले तीन सौ सालो पर मुगलों का वर्चस्व रहा.
2nd Battle of Panipat Between Akbar and Hemchandra Vikramaditya (Hemu)
हुमायूं की दिल्ली मर मृत्यु (24 जनवरी 1556) होने की बाद दिल्ली की गद्दी अकबर ने संभाली, जिस समय वह केवल तेरह वर्ष की आयु के थे, इसके बाद अकबर का राज्याभिषेक 14 फ़रवरी 1556 को पंजाब के कलानौर किया गया. अपने संरक्षक, बैरम खान के साथ अकबर काबुल में कार्यरत थे उस समय वह दिल्ली की राजगद्दी पर थे उस समय इनका मुग़ल शासन केवल काबुल, कंधार, दिल्ली और पंजाब के कुछ ही हिस्सों तक ही सीमित था।
हिन्दू राजा हेमू (हेमचंद्र विक्रमादित्य) के साथ दिल्ली की लड़ाई में अकबर की सेना की हार हुई जिसके बाद हेमू का राज उत्तर भारत में हो गया, इस विजय से पहले हिन्दू राजा हेमू अफगान शासक आदिल शाह की सेना के प्रधान मंत्री व मुख्यमंत्री थे.
हिन्दू राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य वर्तमान के भारतीय राज्य के रेवाड़ी का था, राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) जिस समय सेना के प्रधान मंत्री व् मुख्यंत्री थे उस समय 1553-1556 में इन्होने लगभग 22 युद्द पर पंजाब से बंगाल तक विजय प्राप्त की थी. जिस समय हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) की मृत्यु (जनवरी 1556) हुई उस दौरान यह बंगाल में थे जहाँ पर बंगाल के शासक मुहम्मद शाह को युद्द में मार कर लड़ाई पर काबू पा लिया था. जब हेमू ने हुमायूं की मृत्यु की खबर सुनी तो उन्होंने अपनी सेना को लेकर दिल्ली पर शासन करने का आदेश दिया. हेमू ने अपनी पूरी शक्ति और सेना के साथ उत्तरी भारत में कई लड़ाइयाँ जीतते हुए आगरा पर हमला कर डाला, जहाँ अकबर का सेनानायक युद्ध छोड़कर भाग गया. इस तरह राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य का इटावा, कालपी और आगरा प्रांतों पर काबू हो गया। हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) ने अपनी सेना को मजबूत करना चाहा जिसके लिए इन्होने ग्वालियर में कई सैनिको की भर्ती की. 6 अक्टूबर को हुई दिल्ली (तुगलकाबाद के पास) के युद्ध में हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) ने मुग़ल सेना को पराजित कर विजय हासिल की उस समय एक लेख के अनुसार लगभग 3,000 मुगल सैनिको को मार डाला था, उस समय मुग़ल सेना का कमांडर टरडी बेग अपने बचे सैनिको को के साथ पीछे हट गया और दिल्ली को हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) के कब्जे पर छोड़ गया.
युद्द में दिल्ली और आगरा के पतन के बाद कलानौर में मुग़ल दर गए और परेशानी में आ गए, वही कई मुख्य मुगलों ने अकबर को हेमू के खिलाफ युद्ध ना करना और पीछे हटने अपनी सलाह रखी क्यूंकि, हेमू की सेन्य शक्ति अधिक थी, परन्तु बैरम खान ने युद्ध करना सही समझा और अकबर की सेना ने दिल्ली की और रुख किया. जहाँ पर पानीपत का पहला युद्ध हुआ था जिसमे बाबर ने इब्राहीम लोदी को हराया था वही 5 नवम्बर को पानीपत की दूसरी लड़ाई के लिए अकबर और हेमू की सेना मैदान में उतरी. राजा हेमू ने अपनी सेना का नेतृत्व खुद किया जिसमे लगभग 1500 युद्ध हाथी और तोपखाने शामिल थे, परन्तु हेमू की भारी और बड़ी संख्या वाली सेना पानीपत की यह लड़ाई अकबर की सेना से हार गई और अकबर की सेना की इस युद्ध में जीत हुई. इस हार में राजा हेमू को अकबर की सेना में बंदी बना और जिसमे उन्हें मृत्यु की सजा सुनाई गई और उनका कटा हुआ सिर काबुल के दिल्ली दरवाजा पर प्रदर्शन के लिए भेज दिया गया था, और सिर कटे शरीर को पुराना किला के बाहर लटका दिया गया था ताकि अकबर की सेना का दर लोगो के जिगरो में बना कायम रहे. राजा हेमू की पत्नी खबर सुनकर जान बचाकर कही चली गई जिनका पता नहीं लग सका, अकबर की सेना ने युद्द विरोधियों की हत्या कर दी और हेमू के रिश्तेदारों को बंदी बना लिया जिसमे से कई को मौत की सजा दी गई थी, परन्तु यह जारी रहा 6 माह बाद हेमू के वृद्ध पिता को पकड़ लिया गया और उन्हें भी मौत की सजा सुना दी गई थी. अकबर ने दौबारा दिल्ली और अकरा पर अपना दबदबा कायम कर लिया, परन्तु कुछ समय बाद ही सिकंदर शाह सूरी (आदिल शाह सूरी के भाई) के भाई ने अपनी सेना के साथ हुम्ला कर दिया परन्तु सिकंदर शाह को इस युद्ध में हार का सामना करना और अकबर सेना के हाथो बंदी बना लिए गए जिसके बाद इसे देश निकाला दे दिया गया और बंगाल भेज दिया गया.
पानीपत की यह लड़ाई 1556 में हुई, जिसे जितने के बाद जो बंगाल तक का सारा क्षेत्र राजा हेमू से अकबर ने इस युद्ध में हासिल किया था.