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1962 राइफल मेन जसवंत सिंह रावत ने ढेर किए थे 300 चीनी सैनिक; जाने कौन थे?, भारत-चीन युद्ध जसवंत स्टोरी

Rifleman Jaswant Singh Rawat Story in Hindi

Jaswant Singh Rawat in Indo-Chine War 1962: वर्ष 1962 भारत-चीन युद्ध में देश के वीर साहसी जसवंत सिंह रावत ने सीमा की सुरक्षा करते हुए चीन के तीन करीबन सौ सैनकों को अकेले ही ढेर कर दिया था। राइफलमैन सिपाही रावत को वर्ष 1962 के युद्ध के समय उनकी वीरता के लिए भारत सरकार ने मरणोपरांत महावीर चक्र से भी सम्मानित किया गया था। आइए हम आपको इस लेख के माध्यम से बताते है जसवंत सिंह रावत की सौर्य गाथा।

Indo Chine War 1962

चीन के साथ लड़ा गया वर्ष 1962 का युद्ध जिसे indo China war 1962 कहा जाता है, भारतीय सेना के कई वीर जवानों की गौरव गाथा है। इस युद्ध में भारत-चीन सीमा की रक्षा करते हुए देश के कई वीर जाबाजों ने अपने जान हसते हसते देश के लिए न्यौछावर कर दी थी। वीरता पुरस्कार 2023: द्रोपदी मुर्मू ने प्रदान किए 37 गैलेंट्री अवार्ड

जसवंत सिंह रावत: दुश्मनों के डटकर किया सामना

ऐसे ही भारत के एक महान सपूत रहे राइफल मैन जसवंत सिंह रावत (Rifle Man Jaswant Singh Rawat)। जिन्होंने लगभग 72 घंटे बिना कुछ खाए-पिए रहकर चीनी सैनिको को आगे बढ़ने से रोका साथ ही दावा यह भी किया जाता है कि उन्होंने अकेले दुश्मन देश के तीन सौ सैनिकों को ढेर किया था।

Who Is Jaswant Singh Rawat:

उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल जिले के बादयूं में 19 अगस्त, 1941 को सैनिक जसवंत सिंह रावत का जन्म हुआ था। केवल 17 साल की उम्र में ही वह भारतीय सेना में भर्ती होने चले गए थे, लेकिन उस समय कम आयु की वजह से उन्हें नहीं लिया गया। हालांकि, 19 अगस्त 1960 को राइफल मैं रावत को भारतीय सेना में बतौर राइफल मैन शामिल कर लिया गया था। 14 सितंबर, 1961 को उनकी ट्रेनिंग समाप्त हुई। इसके एक वर्ष बाद ही यानी 17 नवंबर, 1962 को चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश पर घुसपेठ कर उसपर कब्जा करने के उद्देश्य से हमला कर दिया था।

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बटालियन के तीन जवान नहीं लौटे थे वापस

सुबह के करीब 5 बजे चीन के सैनिकों ने सेला टॉप के नजदीक हमला बोल दिया, जहां मौके पर तैनात गड़वाल राइफल्स की डेल्टा कंपनी ने उनका डटकर सामना किया। उड़ दौरान जसवंत सिंह रावत इसी कंपनी का हिस्सा थे। 17 नवंबर 1962 को शुरू हुआ यह युद्ध अगले 72 घंटों तक लगातार जारी रही।

चीनी सेना लगातार बिना रुके हमला कर रहे थे इस कारण भारतीय सेना ने गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुला लिया। परन्तु इस बटालियन में शामिल जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और गोपाल गुसाई नहीं लौटे थे। ये तीनों सैनिक एक बंकर से चीनी सैनिको की गोलीबारी का जबाव दे रहे थे और चीनी मशीनगन को छुड़ाना चाहते थे।

तीन सौ सैनिकों को किया थे ढेर

तीनों जवान चट्टानों और झाड़ियों में छिपकर चीन की और से भारी गोलीबारी से बचते हुए चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और सिर्फ 15 यार्ड की दूरी से हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए चीनी सेना के कई सैनिकों को मारकर उन्होंने मशीनगन छीन ली। इस पुरे युद्ध की दिशा ही बदल गई और चीन का अरुणाचल प्रदेश को जीतने का सपना पूरा नहीं हो सका।

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हालांकि, इस भारी गोलीबारी में त्रिलोकी और गोपाल मारे गए थे। वहीं, जसवंत सिंह रावत को चीनी दुश्मन सेना ने घेर लिया था और उनका सिर काटकर ले गए। इसके बाद 20 नवंबर 1962 को चीन की तरफ से युद्ध विराम की घोषणा कर दी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, इन तीन दिनों के युद्ध में 300 चीनी सैनिक मारे गए थे (Jaswant Singh Rawat killed 300 Chinese soldiers in indo China war 1962 : )। जिससे अरुणाचल प्रदेश को उनके कब्जे में जाने से बचाया जा सके।

मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित

Martyr Jaswant Singh Rawat : राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को वर्ष 1962 के युद्ध के समय उनकी वीरता और सहादत के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना के अब तक के अकेले वीर सैनिक हैं, जिनको मृत्यु के बाद प्रमोशन मिला था। पहले नायक फिर कैप्टन और उसके बाद मेजर जनरल बने।

मृत्यु के बाद भी मिलता रहा प्रमोशन

इस दौरान जसवंत के घरवालों को पूरी तनख्वा भी पहुंचाई गई। अरुणाचल के लोग रावत को आज भी शहीद नहीं मानते हैं। और यह माना जाता है कि वह आज भी वहां है और सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं। शहीद जसतंव सिंह रावत के शौर्य गाथा पर फिल्म भी बनी है जिसका नाम ’72 आवर्स: मारटायर हू नेवर डायड’ (72 Hours Martyr Who Never Died) है।

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