हिंदी दिवस पर कविता – Hindi Diwas Poem 2023 – छोटी सरल कविताएं हिंदी दिवस पर
- विवेक कुमार
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हिंदी दिवस पर कविता (Hindi Diwas Poem) – भारत के इतिहास में 14 सितंबर 1949 को देश की संविधान सभा (constituent assembly) ने हिंदी को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था। इस दिन को विशेष महत्व देते हुए हर साल 14 सितंबर को देश भर में हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता बढाने और इसके महत्व को समझाने के लिए राष्ट्रीय हिंदी दिवस (National Hindi Diwas) मनाया जाता है।
14 सितम्बर हिन्दी दिवस के दिन स्कुल, निजी एवं सरकारी कार्यालयों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन हिंदी दिवस पर भाषण, निबंध एवं कविताएं कही जाती है। हिंदी को सम्मान देने के लिए बच्चे कविताएँ, श्लोक एवं इसके महत्व के बारे में भाषण देते है। हिंदी भाषा भारत की मातृभाषा ही नहीं बल्कि हम हिन्दुस्तानियों की पहचान भी है। आइए हिंदी दिवस इस इस मौके पर हिंदी पर कविता (Hindi Diwas Poem) पढ़े और दुसरे व्यक्तियों को सुनाएं।
हिंदी दिवस पर कविताएं
हिंदी दिवस – कविता 1
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना।
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना।
– राम प्रसाद बिस्मिल
हिंदी दिवस – कविता 2
बनने चली विश्व भाषा जो,
अपने घर में दासी,
सिंहासन पर अंग्रेजी है,
लखकर दुनिया हांसी,
लखकर दुनिया हांसी,
हिन्दी दां बनते चपरासी,
अफसर सारे अंग्रेजी मय,
अवधी या मद्रासी,
कह कैदी कविराय,
विश्व की चिंता छोड़ो,
पहले घर में,
अंग्रेजी के गढ़ को तोड़ो
– अटल बिहारी वाजपेयी
हिंदी दिवस – कविता 3
गूंजी हिन्दी विश्व में
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार;
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार;
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला;
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला;
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी;
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी!
– अटल बिहारी वाजपेयी
हिंदी दिवस – कविता 4
पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा।
हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा।
बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती।
कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती।
आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नामही।
इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही।
– अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
हिंदी दिवस – कविता 5
करो अपनी भाषा पर प्यार ।
जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।
जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार,
और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार ।
बढ़ायो बस उसका विस्तार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,
सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान ।
असंख्यक हैं इसके उपकार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद,
और तुमहारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद ।
बनाओ इसे गले का हार ।
करो अपनी भाषा पर प्यार ।।
– मैथिली शरण गुप्त
हिंदी दिवस – कविता 6
पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा।
हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा।
बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती।
कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती।
आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नाम ही
इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही।
– हरिऔध