पानीपत का युद्ध (Battle of Panipat in Hindi): प्रथम, द्वितिय, तृतीय युद्ध, इतिहास, परिणाम
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Battle of Panipat First Second and Third War in Hindi
पानीपत हरियाणा का एक मुख्य नगर है। सामाजिक आर्थिक तथा ऐतिहासिक रूप से अत्यंत समृद्ध शाली पानीपत का ऐतिहासिक महत्व तब बढ़ जाता है। जब पानीपत के प्रथम, द्वितीय और तृतीय युद्ध की चर्चा होती है।
पानीपत का प्रथम युद्ध (First Battle of Panipat)
पानीपत का प्रथम युद्ध काबुल के शासक जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर और दिल्ली के सुल्तान इब्राहम लोधी के बीच 21 अप्रेल को हुआ था। यह युद्ध इतिहास के सबसे भयानक युद्धों में से एक है जिसमे पहली बार बारूद, गोले और तोपों को शामिल किया गया था। इब्राहम लोधी की मृत्यु के साथ ही इस युद्ध समाप्त हुआ और बाबर की विजय हुई। इसके साथ ही इस क्षेत्र में मुगल साम्राज्य की शुरुअत हुई।
पानीपत का द्वितिय युद्ध (Second Battle of Panipat)
पानीपत का द्वितिय युद्ध 5 नबम्बर 1556 को हेमचंद्र विक्रमादित्य तथा अकबर की सेनाओं के बीच हुआ था। जिसमे अकबर की जीत के पश्चात दिल्ली की गद्दी पर मुगल साम्राज्य का अधिपत्य हो गया और 300 वर्षों तक उन्होंने दिल्ली पर शासन किया।
पानीपत का तृतीय युद्ध (Third Battle of Panipat)
पानीपत का तृतीय युद्ध अफगानिस्तान की दुर्रानी साम्राज्य तथा मराठा साम्राज्य के मध्य 14 जनवरी 1761 में लड़ा गया। यह युद्ध जितना भयानक था उतना ही प्रभावशाली भी क्योंकि यह पानीपत का तृतीय और आखरी युद्ध था।
मराठा साम्राज्य की कमान पेशवा नाना साहब के हाथों में थी जबकि अहमद शाह दुर्रानी जो कि दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक था और 1747 में राज्य का सुल्तान बना था। दिल्ली मराठा साम्राज्य की कठपुतली बनकर काम कर रही थी। जिसे पेशवा नाना साहब पुणे से चला रहे थे।
मुग़ल साम्राज्य का अंत शुरु हो गया था, जब मुगलों के ज्यादातर भू – भागों पर मराठों का आधिपत्य हो गया था। 1739 में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया। 1757 ईस्वी में पेशवा के भाई रघुनाथ राव ने दिल्ली पर आक्रमण कर दुर्रानी को वापस अफ़गानिस्तान लौटने के लिए विवश कर दिया। तत्पश्चात उन्होंने अटक और पेशावर भी अपने अधीन कर लिए, अहमद शाह दुर्रानी को ही नहीं अपितु संपूर्ण उत्तर भारत की शक्तियों को मराठों से संकट पैदा हो गया। जिसमें अवध के नवाब सुजाउद्दौला और रोहिल्ला सरदार नजीबउद्दोला भी सम्मिलित थे। इसी संकट को भांपते हुए रोलाहाबाद के नवाब नजीब उद्दौला ने अफगानिस्तान के सुल्तान अहमद शाह अब्दाली को भारत आने का न्योता भेजा और मराठों से युद्ध करने के लिए भी मनाया, तब वास्तविकता में पानीपत के तृतीय युद्ध की भूमिका प्रकाश में आई।
पानीपत युद्ध के परिणाम (Results of the Battle of Panipat)
अहमद शाह अब्दाली ने अटक और पेशावर जो मराठा साम्राज्य के अधीन थे को जीतकर दुर्रानी परचम लहरा कर तथा मराठा विश्वासपात्र दत्ता जी शिंदे की हत्या करके मराठों को चुनौती प्रदान की।
इस युद्ध में अहमद शाह अब्दाली के साथ अवध के नवाब सुझाव दौरा तथा रोलाहबद के नवाब नजीब उद्दौला मुख्य रूप से साथ थे, तो वही मराठा सेना की कमान पेशवा के चचेरे भाई सदाशिव भाऊ संभाले हुए थे, 1759 में उदयगिरि में निजाम को परास्त करके सदाशिव भाऊ पेशवा ने अपनी गार्दी सेना को भी साथ मिला लिया था, गार्दी सेना का मुख्य तोपची इब्राहिम खान जो सदाशिव भाऊ का अनन्य विश्वासपात्र था वह भी इस युद्ध में मराठों के साथ था।
सदाशिवराव भाऊ अपनी समस्त सेना को 1760 ईसबी मे उदयगिरि से लेकर सीधे दिल्ली की ओर रवाना हो गए। उस वक्त अहमद शाह अब्दाली दिल्ली पार करके दोआब में पहुँच चुका था और वहाँ पर वह अवध के नवाब सुजाउदौला और रोहिल्ला सरदार नजीबउद्दौला को रसद पहुंचाने का काम कर रहा था।
इस ओर जब मराठा सेना दिल्ली में पहुंची तो उन्होंने लाल किला जीत लिया। जिसके बाद उन्होंने कुंजपुरा के किले पर हमला कर दिया। कुंजपुरा में अफगान को पूरी तरह तबाह करके उनसे सभी सामान और खाने-पीने की आपूर्ति मराठों को हो गई। मराठों ने लाल किले की चांदी की चादर को भी पिघला कर उससे भी धन अर्जित कर लिया।
उस वक्त मराठों के पास उत्तर भारत में दिल्ली ही धनापूर्ति का एकमात्र साधन थी। बाद में अब्दाली को रोकने के लिए यमुना नदी के पहले उन्होंने एक सेना तैयार की थी,परंतु अहमदशाह ने नदी पार कर ली। अक्टूबर के महीने में और किसी गद्दार की गद्दारी की वजह वह से मराठों की वास्तविक जगह और स्तिथी का पता लगाने में सफल रहा।
जब मराठों कि सेना वापिस मराठवाड़ा जा रही थी तो उन्हें पता चला कि अब्दाली उनका पीछा कर रहा है, तब उन्होंने युद्ध करने का निश्चय किया। अब्दाली ने दिल्ली और पुणे के बीच मराठों का संपर्क काट दिया। मराठों ने भी अब्दाली का संपर्क काबुल से काट दिया। इस तरह तय हो गया था कि जिस भी सेना को पूर्ण रूप से अन्न जल की आपूर्ति होती रहेगी वह युद्ध जीत जाएगी।
करीब डेढ़ महीने की मोर्चा बंदी के बाद 14 जनवरी सन् 1761 को बुधवार के दिन सुबह 8:00 बजे यह दोनों सेनाएं आमने-सामने युद्ध के लिए आ गई। मराठों को रसद की आमद हो नहीं रही थी और उनकी सेना में भुखमरी फैलती जा रही थी, परंतु अहमदशाह को अवध और रूहेलखंड से रसद की आपूर्ति हो रही थी।
इस भीषण महायुद्ध में अभी 40000 तीर्थयात्रियों सहित एक लाख से ऊपर लोग मारे गए थे जिनमें पेशवा नाना साहब के पुत्र विश्वास राव, सेनानायक सदाशिव राव, पेशवा इब्राहिम खान, जानकोजी शिंदे, रघुनाथ राव सहित कई मराठा सरदार वीरगति को प्राप्त हुए। यह एक बड़ा नरसंहार था। मल्हार राव के नेतृत्व में कूटनीतिक तरीके से मराठा परिवार की महिलाएं युद्ध में साथ थी। उन्हें पुनः वापस लाया गया। इस युद्ध में मराठा साम्राज्य की हार और अपनों की मृत्यु ने पेशवा नाना साहब को अंदर से झकझोर दिया। उन्होंने पुनः निश्चय किया, कि वह अहमद शाह अब्दाली पर फिर से युद्ध करके उसे हर कर अपनों की मौत का बदला लेंगे परंतु इस युद्ध में भीषण नरसंहार के कारण अहमद शाह अब्दाली भी अंदर से टूट चुका था। उसकी सेना भी बड़े पैमाने पर मारी गई थी और वह आर्थिक रूप से भी कमजोर थी। उसने पीछे हटना सही समझा और वापस अफगानिस्तान चला गया।
अफगानिस्तान पहुंचकर अहमद शाह अब्दाली ने नाना साहब के लिए पत्र लिखा उसने 10 फरवरी,1761 को पेशवा को पत्र लिखा कि “मैं जीत गया हूँ लेकिन दिल्ली की गद्दी नहीं लूगा, आप ही दिल्ली पर राज करें मैं वापस जा रहा हूँ।”
अब्दााली का भेजा पत्र बालाजी बाजीराव ने पढ़ा और वापस पुणे लौट गए। परंतु थोड़े समय में ही 23 जून 1761 को मानसिक अवसाद के कारण उनकी मृत्यु हो गई, क्योंकि इस युद्ध में उन्होंने अपना पुत्र और अपने कई मराठा सरदारों को खो दिया था।