परोपकार पर निबन्ध – Essay On Philanthropy in Hindi

Philanthropy Essay – यहाँ पर आप परोपकार पर निबन्ध (Essay On Philanthropy in Hindi) के सरल उदाहरण प्रकाशित किए गए है.

नीचे दिया गया परोपकार निबंध हिंदी में कक्षा 1 से 12 तक के छात्रों के लिए उपयुक्त है।

परोपकार पर निबंध

भूमिका – मानव जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है। कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाते हैं, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी दे कर चला जाता है। इसी तरह से प्रकृति अपना सर्वस्व हमको दे देती है। वह हमें इतना कुछ देती है, लेकिन बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेती है। किसी भी व्यक्ति की पहचान परोपकार से की जाती है। जो व्यक्ति परोपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है। वह अच्छा व्यक्ति होता है। जिस समाज में दूसरों की सहायता करने की भावना जितनी अधिक होगी वह समाज उतना ही सुखी और समृद्ध होगा परोपकार की भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है।

परोपकार का अर्थ
परोपकार दो शब्दों से मिलकर बना है, पर + उपकार परोपकार का अर्थ होता है, दूसरों का अच्छा करना। परोपकार का अर्थ होता है, दूसरों की सहायता करना जब मनुष्य खुद की या ‘स्व’ की संकुचित सीमा से निकल कर दूसरों की या ‘पर’ के लिए अपने सर्वस्व का बलिदान दे देता है, उसे ही परोपकार कहा जाता है। परोपकार की भावना ही मनुष्य को पशुओं से अलग करती है, नहीं तो भोजन और नींद तो पशुओं में भी मनुष्य के समान ही पाई जाती है। दूसरों का हित चाहते हुए तो ऋषि दधीचि ने अपनी अस्थियां भी दान में दे दी थी। एक कबूतर के लिए महाराज शिवि ने अपने हाथ तक का बलिदान दे दिया था। गुरु गोविंद सिंह जी धर्म की रक्षा करने के लिए खुद और बच्चों के साथ बलिदान हो गए थे। ऐसे अनेक महान पुरुष हैं जिन्होंने लोक कल्याण के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया था।

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मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म
मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म परोपकार होता है। मनुष्य के पास विकसित दिमाग के साथ-साथ संवेदनशील हृदय भी होता है। मनुष्य दूसरों के दुख को देख कर दुखी हो जाता है और उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो जाती है। वह दूसरों के दुखों को दूर करने की कोशिश करता है। तब वह परोपकारी कहलाता है। परोपकार का संबंध सीधा दया करुणा और संवेदना से होता है। हर परोपकारी व्यक्ति करुणा से पिघलने की वजह से हर दुखी व्यक्ति की मदद करता है। परोपकार के जैसा ना ही तो कोई धर्म है और ना ही कोई पुण्य जो व्यक्ति दूसरों को सुख देकर खुद दुखों को चाहता है, वास्तव में वही मनुष्य होता है। परोपकार को समाज में अधिक महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि इससे मनुष्य की पहचान होती है।

मानव का कर्म क्षेत्र – परोपकार और दूसरों के लिए सहानुभूति से ही समाज की स्थापना हुई है। परोपकार और दूसरों के लिए सहानुभूति से समाज के नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा होती है। जहां पर दूसरों के लिए किए गए काम से अपना स्वार्थ पूर्ण होता है। वहीं पर समाज में भी प्रधानता मिलती है।

मरने वाले मनुष्य के लिए यही समाज उसका कर्म क्षेत्र होता है। इसी समाज में रहकर मनुष्य अपने कर्म से आने वाले अगले जीवन की पृष्ठभूमि को तैयार करता है। संसार में 84 लाख योनियाँ होती हैं। मनुष्य अपने कर्म के अनुसार ही इनमें से किसी एक योनि को अपने अगले जन्मों के लिए इसी समाज में स्थापित करता है। भारतीय धर्म साधना में जो अमृत्व का सिद्धांत होता है, उसे अपने कर्मों से प्रमाणित करता है।

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लाखों-करोड़ों लोगों के मरणोपरांत अब सिर्फ वही मनुष्य समाज में अपने नाम को स्थाई बना पाता है। जो इस जीवनकाल को दूसरों के लिए अर्पित कर चुका होता है। इससे अपना भी भला होता है। जो व्यक्ति दूसरों की सहायता करते हैं। वक्त आने पर वे लोग उनका साथ देते हैं। जब आप दूसरों के लिए कोई कार्य करते हैं, तो आपका चरित्र महान बन जाता है।

परोपकार से अलौकिक आनंद और सुख का आधार है। परोपकार में स्वार्थ की भावना के लिए कोई स्थान नहीं होता है। परोपकार करने से मन और आत्मा को बहुत शांति मिलती है। परोपकार से भाईचारे की भावना और विश्व बंधुत्व की भावना भी बढ़ती है।

मनुष्य को जो सुख का अनुभव नग्न को कपड़ा देने में, भूखे को रोटी देने में किसी व्यक्ति के दुख को दूर करने में और बेसहारा को सहारा देने में होता है। वह किसी और काम को करने से नहीं होता है। परोपकार से किसी भी प्राणी को अलौकिक आनंद मिलता है। जो सेवा बिना स्वार्थ के की जाती है वह लोकप्रियता प्रदान करती है। जो व्यक्ति दूसरों के सुख के लिए जीते हैं उनका जीवन प्रसन्नता और सुख से भर जाता है।

परोपकार का वास्तविक स्वरूप
आज के समय में मानव अपने भौतिक सुखों की ओर अग्रसर होता जा रहा है। इन भौतिक सुखों के आकर्षण ने मनुष्य को बुराई भलाई की समझ से बहुत दूर कर दिया है। अब मनुष्य अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए काम करता है। आज के समय का मनुष्य कम खर्च करने और अधिक मिलने की इच्छा रखता है। आज के समय में मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र को व्यवसाय की नजर से देखता है। जिससे खुद का भला हो वह काम किया जाता है। उससे चाहे दूसरों को कितना भी नुकसान क्यों ना हो। पहले लोग धोखे और बईमानी से पैसा कमाते हैं और यश कमाने के लिए उसमें से थोड़ा सा तीर्थ स्थलों पर जाकर दान दे देते हैं। यह परोपकार नहीं होता है।

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ईसा मसीह जी ने कहा था, कि जो दान दाएं हाथ से किया जाए, उसका पता बाएं हाथ को नहीं चलना चाहिए। वह परोपकार होता है। प्राचीन काल में लोग गुप्त रूप से दान दिया करते थे। वे अपने खून पसीने से कमाई हुई दौलत में से दान किया करते थे। उसे ही वास्तविक परोपकार कहते हैं।

उपसंहार – परोपकार मानव समाज का आधार होता है। परोपकार के बिना सामाजिक जीवन गति नहीं कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति का धर्म होना चाहिए, कि वह एक परोपकारी बने दूसरों के प्रति अपने कल्याण को निभाएं कभी भी दूसरों के प्रति हीन भावना नहीं रखनी चाहिए।

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