India China Border Dispute GK in Hindi – भारत-चीन सीमा विवाद
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भारत-चीन सीमा विवाद
भारत और चीन के बिच लम्बे समय से चले आ रहे सीमा विवाद के समाधान के कोई आसार अभी तक नहीं दिखाई दिया. इस सीमा विवाद के चलते 1962 में दोनों देशो के बिच सैनिक संघर्ष भी हो चुका है जिसमें भारत को पराजय का सामना करना पड़ा था तथा भारत के एक बड़े भू-भाग पर चीन द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया था. 1950-51 में चीन में प्रकाशित मानचित्रों में भारत के एक बहुत बड़े हिस्से को चीन को चीन का अंग दिखाया गया. जब भारत ने इस सम्बन्ध में चीन से शिकायत की तो चीन ने इसका समाधान करने की बजाय इस मामले को यह कहकर टाल दिया की यह पुरानी सरकार के मानचित्र हैं जिन्हें समय अभाव के कारण संचोधित नहीं किया जा सका हैं.
भारत ने चीन की विस्तारवादी निति की अवहेलना करते हुए चीन के उक्त जवाब को सीधे सपाट अर्थो में ले लिया. उल्लेखनीय हैं की 3500 किलोमीटर लम्बी भारत-चीन सीमा के दो भाग हैं-पूर्वी भाग तथा पश्चिम भाग. पूर्वी भाग में दोनों के मध्य सीमा का निर्धारण मैकमोहन रेखा द्वारा 1914 में किया गया था, लेकिन चीन इसे साम्राज्यवादी सीमा रेखा कहकर इसे मान्यता नहीं प्रदान कर रहा हैं. अब चीन इस क्षेत्र में भारत के अरुणाचल प्रदेश में 90 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना दावा कार रहा है. उधर पश्चिमी क्षेत्र में चीन की सेनाएं लद्दाख क्षेत्र से मिलती हैं. 1962 के युद्ध के बाद चीन ने अक्साई चीन क्षेत्र में भारत की 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर अधिकार कर लिया, जो आज भी चीन के नियंत्रण में हैं. साथ ही चीन मध्य क्षेत्र में 2 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर भी अपना दावा प्रस्तुत कर रहा हैं. युद्ध के बाद चीन ने पाकिस्तान के साथ सैनिक गठजोड़ की निति अपनाई.
पाकिस्तान ने एक समझोते के तहत 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर का 5180 वर्ग किलोमीटर भू-भाग चीन को सौंप दिया. इस भू-भाग को प्राप्त करने के उपरान्त चीन और पकिस्तान की सीमाएं सीधे एक-दुसरे से मिल गई. चीन ने अपने सिक्यांग प्रान्त को पाकिस्तान से जोड़ते हुए इस क्षेत्र में कराकोरम हाइवे का निर्माण किया. भारत और पाकिस्तान के 1965 और 1971 के युद्धों में चीन ने भारत का विरोध करने के साथ-साथ पाकिस्तान को सैनिक हथियार व् सुविधाएं प्रदान की.
सीमा विवाद आज भी इसी रूप में लम्बित हैं. द्विपक्षीय मामलों में अभी तक दोनों देश सीमा विवाद का समाधान नहीं खोज सके हैं. यद्दपि दोनों देश 2003 से निरंतर विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता के माध्यम से इसके सामाधान के लिए लिए प्रयासरत हैं. दोनों ने इस बात पर सहमति व्यक्त कर ली हैं की वे सीमा पर शान्ति बनाए रखेंगे तथा सीमा विवाद के बावजूद अन्य क्षेत्र में सहयोग का प्रयास करेंगे. ऐसा प्रतीत होता हैं की चीन अभी इस समस्या के स्थायी समाधान हेतु इच्छुक नहीं हैं, क्युकी समय-समय पर चीन सीमा सम्बन्धी विवाद को अप्रत्यक्ष रूप से हवा देता रहता हैं. यह एक आम बात है की अरुणाचल प्रदेश को चीन के नक़्शे में चीन के अंग के रूप में दिखाया जाता हैं. सीमा विवाद को सुलझाने के लिए अब तक विशेष प्रतिनिधियों के बिच 19 चक्रों की बातचीत संपन्न हो चुकी हैं, लेकिन उसका कोई समाधान नहीं मिल सका हैं.