Political Rights in India in Hindi
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जिन अधिकारों के द्वारा मानुष अपने देश के शासन में भागिदार बनता है, वे राजनितिक अधिकार कहलाते है| राजनितिक अधिकारों की कल्पना लोकतंत्र में ही की जा सकती है] नागरिक अधिकारों से तात्पर्य नागरिकों को उनके नागरिक जीवन में राज्य के हस्तक्षेप से स्वतंत्र बनाना है| इस प्रकार नागरिकों को अपने जीवन को स्वतंत्रतापूर्वक जीने का अधिकार है|
राजनितिक अधिकार–
किसी भी प्रजातंत्र देश के नागरिकों को साधारणत: निम्नलिखित राजनितिक अधिकार प्राप्त होते है-
मत देने का अधिकार – यह अधिकार सामान्यत: केवल लोकतंत्रवादी देशो में वयस्क नागरिकों को ही प्राप्त होता है क्योकि लोकतंत्र में जनता स्वयं अपना शासक (प्रतिनिधि) चुनती है| प्राचीन यूनानी राज्यों में जनसँख्या इतनी कम थी की सभी नागरिक एक स्थान पर एकत्रित होकर कानून बना लेते थे, किन्तु वर्तमान युग की अत्यधिक बढती जनसँख्या की कारण प्रत्यक्ष जनतंत्र को चलना सम्भव नहीं है| इसी कारन प्रतिनिधि चुने जाने की विधि को अपनाया गया है | अब प्रति पांच या छ: वर्षो के पश्चात् जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और उन्हें शासन की बागडोर सोंप देती है तथा आवश्यकतानुसार जनहित विरोधी कार्य करने वाली सरकार को वह आगामी चुनाव में हटा देती है तथा नये प्रतिनिधियों को सरकार बनाने का अवसर देती है| किसी व्यक्ति को धर्म, जाती, लिंग, संप्रदाय, संपत्ति एवं शिक्षा के आधार पर मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता| भारत में मताधिकार की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है|
निर्वाचित होने का अधिकार – लोकतंत्र की स्थापना केवल जनता को मतदान का अधिकार देने मात्र से संतुष्ट नहीं हो सकती | इसके लिए प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने का अधिकार देने भी उतना ही आवश्यक है, जितना मत देने का अधिकार| प्रत्येक वह व्यक्ति जो यह समझता है की मेरे सहयोगी मुझे अपना प्रतिनिधि चुनना चाहते है तो उसे निर्वाचन में खड़े होने का अधिकार होना चाहिए| यदि केवल थोड़े से व्यक्ति को निर्वाचित होने का धिकार दिया गया तो एक विशेष अधिकारों वाला वर्ग उत्पन्न हो जाएगा जो जनता की भलाई की चिंता नहीं करेगा| विशेष अधिकारों वाले वर्ग के निर्माण से प्रजातंत्र की आत्मा का हनन होता है|
सरकारी नौकरी करने का अधिकार – लोकतंत्रवादी देश के नागरिकों को बिना भेदभाव के सरकारी नौकरियां पाने का अधिकार होता है योग्यता के आधार पर ही श्रेष्ठतम नागरिक को उस पद के लिए नियुक्त किया जाता है किसी पद के लिए जो योग्यताएं निश्चित की जाती है वे सभी नागरिकों के लिए सामान होती है किसी नागरिक को जाती, धर्म, लिंग अथवा भाषा के आधार पर सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता| परन्तु अनुसूचित जाती, जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लिए नौकरियां आरक्षित की जा सकती है| भारत में बड़े-बड़े सरकारी पदों के लिए योग्यतम नागरिकों की भारती के लिए एक संघ लोक सेवा अयोग्य की स्थापना की गयी है जो बिना किसी भेदभाव के सरकारी पदों के लिए व्यक्तियों को नियुक्त करने के लिए सिफारिश करती है|
प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार – लोकतंत्र में नागरिकों को यह अधिकार प्राप्त होता है की वे व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से अपने कष्टों तथा असुविधाओं की और सरकार का ध्यान आकर्षित कर सकें| इसके लिए वे प्रार्थना-पत्र दे सकते है इसके दो लाभ होते है-पहला, प्रतिनिधियों को जनता के कष्टों का पता चल जाता है| दुसरे, जनता सरकार को अपना समझती है और उसकी निष्ठां सरकार में बनी रहती है| प्रार्थना-पत्र देना सरकार के विरुद्ध नहीं समझा जाना चाहिए|
सरकार की तर्कपूर्ण आलोचना करने का अधिकार – लोकतंत्र राज्यों में सरकार अपने प्रतिनिधियों को चुनकर शासन की बागडोर उनके हाथ में देती है| यदि प्रतिनिधि शक्ति प्राप्त करने के पश्चात जनता की भलाई का ध्यान न रखें तो जनता को यह अधिकार प्राप्त होता है की वह सरकार की गलत नीतियों की आलोचना कर सके किन्तु यह आलोचना संवेधानिक उपायों द्वारा ही व्यक्त की जानी चाहिए| हिंसा का उपयोग दंडनीय अपराध होता है| जन आलोचना से सरकार सतर्क हो जाती है और प्रतिनिधियों का ध्यान जनता के कष्टों की और आकर्षित हो जाता है| वे जान जाते है की यदि यह आलोचना जारी रही तो भविष्य में आने वाले चुनावों में जनता उन्हें नहीं चुनेगी| अत: सरकार की स्वस्थ आलोचना करना जनता के हाथ में दिया गया एक ऐसा अस्त्र है जिसमें वह अपनी रक्षा कर सकती है| तानाशाही अथवा एकतंत्र सरकारों में जनता को यह अधिकार नहीं दिये जाते है|