1942 भारत छोड़ो आन्दोलन – इसके कारण, परिणाम, प्रभाव
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Quit India Movement in Hindi – Cause, Consequence, Effect
क्रिप्स मिशन की असफलता से देश में विषाद और आक्रोश की लहर – सी दोड़ गई . लगभग सभी क्षेत्रो में निराशा थी अगस्त 1942 में निति संबंधी फेसले का अनुमोदन करने के लिए बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक बुलाई गई . इसमें ‘भारत छोड़ो ‘ का मशहूर प्रस्ताव पास हुआ. प्रस्ताव पास होने के बाद गाँधी ने घोषित किया की उनका पहला काम वाईसराय से मिलकर मांगों को स्वीकार कराने के लिए पेरवी करना होगा . लेकिन सरकार ने वाईसराय से गाँधी के मिलने का इन्तजार नहीं किया और बैठक के तुरंत बाद गाँधी को गिरफ्तार कर लिया और तिन दिन के अन्दर सभी मुख्य राष्ट्रिय नेताओ को अहमदनगर किले में नजरबन्द कर दिया गया.
सन 1942 का विद्रोह एक अर्थ में भारतीय राष्ट्रीयवादी आन्दोलन की समाप्ति था परिचायक था . इसके बाद प्रश्न सिर्फ यह रह गया की सत्ता का हस्तांतरण किस प्रकार हो और स्वतंत्रता के बाद सरकार का स्वरुप क्या हो. अप्रैल 1945 में युद्ध समाप्त हो गया . चर्चिल ने त्यागपत्र दे दिया ने चुनाव होने वाले थे . जून 1945 में भारतीय विधयक 1935 के ढाँचे के अंतर्गत कुछ और संवेधानिक सुधर लाने के प्रस्तावों की घोषणा की गई . कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों को रिहा कर दिया गया और सभी राजनितिक नेतायों की एक बैठक शिमला में बुलाई गई . शिमला प्रस्ताव में कई असंतोषजनक बातें शामिल थी उसमे सुझाया गया की वाईसराय की कार्यसमिति में उन्हें और प्रधान सेनापति को छोड़कर सभी सदस्य भारतीय होंगे परन्तु प्रस्ताव के अनुसार समिति में हिंदुयों और मुसलमानों का अनुपात बराबर होना था दुसरे शब्दों में मसलमानो की सांप्रदायिकता की मांग को ब्रिटेन ने सरकारी तोर पर स्वीकार किया . समझोता वार्ता जिन्ना के इस दुराग्रह के कारण टूट गई की कार्यसमिति के सारे मुसलमानों को मनोनीत करने का अधिकार सिर्फ लीग को होगा . ब्रिटिश सरकार भी किसी ऐसे समझोते पर हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं थी जिसमें मुस्लिम लीग एक पक्ष न हो . ‘फुट डालो और राज करो’ की निति अपने शिखर पर थी.
सन 1945 में बिर्टेन में सत्ता सँभालने के बाद लेबर पार्टी को युद्ध के बाद कई प्रकार की राष्ट्रिय और अंतराष्ट्रीय समस्यायों का सामना करना पड़ा .
युद्ध ने विश्व में बिर्टेन की स्थिति और शक्ति में आमूल परिवर्तन कर दिया . हालाँकि बिर्टेन युद्ध में जीता अवश्य था परन्तु उसकी आर्थिक और सेनिक शक्ति को जबरदस्त धक्का लगा था उसे उनके पुनर्गठन और पुनर्स्थापना के लिए समय की आवश्यकता थी सवियत संघ और अम्रीका दोनों, महान शक्तियों के रूप में उभरे थे और दोनों ही भारत स्वतंत्रता के पक्ष में थे इसके अलावा भारत में भी परिस्थिति बिलकुल बदल चुकी थी और बिर्टेन के लिए अधिक दिन तक शासन रखना संभव नहीं था सन 1942 का विद्रोह , आजाद हिन्द फोज का मुकदमा , अकाल तथा आर्थिक संकट , नेताओं का बढ़ता हुआ असंतोष , पुलिस और शासतंत्र के राष्ट्रीयवादी झुकाव आदि ने यह बात सिद्ध कर दी की बिर्टिश सरकार को जल्दी ही गतिरोध समाप्त करना होगा फ़रवरी 1946 में भारतीय नोसेना के नाविकों की हड़ताल शुरू हुई और अगले दिन बिर्टेन के प्रधानमंत्री ने कैबिनेट मिशन भेजने के फेसले की घोषणा की.
कैबिनेट मिशन 23 मार्च , 1946 को भारत पहुंचा विभिन्न दलों और संगठनों के प्रतिनिधि नेताओ से लम्बे और विस्त्रत – विचार विमर्श के बाद मिशन ने अपनी योजना घोषित की जिसे कांग्रेस और लीग ने स्वीकार किया. योजना के अर्थ को लेकर बाद में कुछ मतभेद पैदा हुए लेकिन सितम्बर 1946 में जवाहर लाल नेहरु के नेत्रत्व में कांग्रेस ने सरकार का गठन किया. अक्टूबर में मुस्लिम लीग भी सरकार में शामिल हो गई लेकिन संविधान के निर्माण में उन्होंने न शामिल होने का फेसला लिया सत्ता के हस्तांतरण के लिए लार्डमाउंटबेटन को भारत भेजा गया . कांग्रेस और लीग के बिच भयंकर मतभेद पैदा हो गए थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने एक समझोता योजना तैयार की साथ ही सत्ता के हस्तांतरण की तारीख भी निश्चित कर दी जो घोषित तिथि से साल-भर पहले की थी भारत 15 अगस्त , 1947 को स्वतंत्र होता, लेकिन उसका विभाजन हो जायगा बिर्टिश ससंद ने भारत स्वतंत्रता अधिनियम पास किया जिसमें 15 अगस्त , १९४७ को भारत और पाकिस्तान नामे के दो राज्य स्थापित करने की व्यवस्था थी . इसके अनुसार बिर्टिश सरकार ने सत्ता का हस्तांतरण दो संवेधानिक सभाओं को दिया जो अपना-अपना संविधान बनाने के लिए स्वतंत्र और सर्वभोम थी . भारत के देशी रियासतों पर से बिर्टिश सर्वोच्चता को समाप्त कर दिया गया और उन्हें भारत या पाकिस्तान में मिलने या स्वतंत्र रहने के लिए खुला छोड़ दिया गया 15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतंत्र और सर्वभोम देश के रूप में उभरा और इस तरह राष्ट्रिय आन्दोलन ने अपना राजनितिक लक्ष्य पूरा किया.
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