Yusuf Meherally in Hindi – आज़ादी की लड़ाई में 8 बार जेल जाने वाले यूसुफ़ मेहर अली का जीवन परिचय हिंदी में

Yusuf Meherally Biography in Hindi – आजादी को हासिल करने में कई चेहरे जाने-पहचाने थे, तो कुछ ऐसे भी थे, जिनका नाम हम लोगो ने शायद ही कभी सूना होगा. इन्ही में से एक नाम हैं युसुफ मेहराली (Yusuf Meherally) का. बहुत कम लोग जानते हैं की युसुफ ने भी आजादी का सबसे कारगार नारा भारत छोड़ो दिया था. बाद में इसी नारे को महात्मा गाँधी ने 1942 में भारत की आजादी के लिए छेड़े गए सबसे बड़े आन्दोलन के लिए अपनाया था. उन्होंने ही पहली बार ‘साइमन गो बैक’ का नारा दिया था.

युसुफ मेहराली कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य थे. युसुफ मेहराली का जन्म मुंबई के एक संपन्न मुस्लिम बोहरा परिवार में 23 सितम्बर, 1903 को हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा बोरीबंदर के न्यू हाईस्कुल में हुई. इसके बाद सेंट जेवियर कॉलेज और एलिंफ़स्टन कॉलेज उनकी पढ़ाई का केंद्र बना. इसी दौरान उनके अंदर नाटकों और कविताएँ लिखने का जूनून सवार हुआ. धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी राजनितिक गतिविधियों में बढ़ने लगी. इसके चलते ही वह बोम्बे स्टूडेंट ब्रदर हुड संगठन में शामिल हुए, जिसने 20 मई, 1928 को बम्बई के ओपेरा हाउस में एक सभा का आयोजन किया, इस सभा को पंडित जवाहर लाल नेहरु और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भी संबोधित किया था. इन दोनों के भाषणों से प्रभावित होकर वे तत्कालीन राष्ट्रभक्त युवाओं की संस्था यूथ लीग के सदस्य बन गए.

कॉलेज में फ़ीस वृद्धि और बंगलौर में छात्रों पर पुलिस की गोलीबारी के विरोध तथा हडताली मिल मजदूरों के समर्थन में जनसभाएं आयोजित कर युसुफ ने अपनी संगठन क्षमता का परिचय दिया. उनकी क्षमताओं से घबराई बिर्टिश हुकूमत ने उन्हें बोम्बे हाईकोर्ट में प्रेक्टिस करने तक से रोक दिया. जब भारत को कुछ अधिकार दिए जाने की बात सामने आई, तो उसके लिए साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया गया. युसुफ इस आयोग के एकमात्र भारतीय सदस्य थे. दिसंबर 1927 को भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ने साइमन कमीशन के बहिष्कार का प्रस्ताव पारित किया. 3 फ़रवरी, 1928 की रात में मुंबई के मोल बंदरगाह पर पानी के जहाज से साइमन कमीशन के सदस्य उतरे. तभी समाजवादी नौजवान युसुफ मेहर अली ने नारा लगाया साइमन गो बैक का नारा दिया. इसके बाद बिर्टिश हुकूमत ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठी बरसाई.

इसी लाठीचार्ज के खिलाफ युसुफ ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और जीत भी हासिल की. युसुफ मेहर अली ने यूथ लीग के सदस्यों के साथ पूरी मुंबई में साइमन कमीशन के खिलाफ पोस्टर चिपकाए. बम्बई के ग्रांट रोड पर हजारों लोगो के विरोध प्रदर्शन के बीच युसुफ को पुलिस ने लहूलुहान हालत में गिरफ्तार कर लिया. साइमन कमीशन के विरोध की लहर पुरे देश में फ़ैल गई. इनके बाद 12 सितम्बर को बाम्बे प्रेसिडेंसी यूथ लीग का सम्मलेन हुआ, जिसमें पूर्ण स्वराज की बात कही गई. कांग्रेस लाहौर अधिवेशन में भी इसको अपनाया.

क्रन्तिकारी जतिनदास की लाहौर जेल में 60 दिन के अनशन के बाद मौत पर यूथ लीग ने एक विशाल जुलूस निकालकर अंग्रेजो के खिलाफ अपनी जबरदस्त मुहीम शुरू की इसके खिलाफ बाम्बे में बडाला नमक सत्याग्रह शुरू किया गया. इसको कुचलने के लिए अंग्रेजो ने प्रदर्शकारियों पर घोड़े दौड़ा दिए. इस दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सन 1934 में जब कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ, तो उसमें युसुफ की महत्वपूर्ण भूमिका थी. 14 जनवरी, 1935 को युसुफ ने बिर्टिश हुकूमत के खिलाफ चौपाटी पर एक जनसभा में घोषित किया. सितम्बर 1936 में आंध्र समाजवादी पार्टी के सम्मलेन के वे अध्यक्ष बनाए गए. बंगाल में भी उन्होंने जनसभाएं की. इससे दर कर जून 1937 में मालाबार यात्रा के दौरान उनकी सभाओं पर रोक लगा दी गयी और कालीकट में गिरफ्तार कर 6 माह की जेल की सजा दी गई. कच्छ के शासक के अन्याचारों के खिलाफ उन्होंने आन्दोलन चलाया. 1938 में वे लाघौर में हुए समाजवादी दल के अधिवेशन के अध्यक्ष बनाए गए. 1940 में गांधीजी के व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर नासिक की सेन्ट्रल जेल में रखा गया. 1942 में वह बाम्बे नगरपालिका के महापौर बने.

8 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित हुआ. इस अधिवेशन से घबराई बिर्टिश हुकूमत ने 9 अगस्त, 1942 को सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया. इसके बाद शुरू हुई अगस्त क्रान्ति ने बिर्टिश हुकूमत की नींव हिलाकर रख दी थी. यही वो वक्त था जब युसुफ को बिर्टिश हुकूमत ने बंदी बनाकर अनेकानेक यातनाएं दी लेकिन बाद में उन्हें मजबूरन रिहा करना पड़ा. 31 मार्च, 1949 को वे मुंबई नगर (दक्षिणी) निर्वाचन क्षेत्र से चुने जाने पर विधान सभा के सदस्य बने. 2 जुलाई, 1950 को उन्होंने अपने साथियों से अंतिम समय में विदा ले ली. मृत्यु के समय उनकी आयु मात्र 47 वर्ष थी. जयप्रकाश जी उनके अंतिम समय में मौजूद थे. उनकी शवयात्रा में कई बड़े नेता शामिल हुए और उनके पार्थिव शारीर को कन्धा दिया, अच्युत पटवर्धन ने मैहर अली को लौहपुरुष की संज्ञा दी थी.

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